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शैलेश सिंह |
आनन फानन में तैयारी होने लगी, और फिर राजाराम शहर चला गया,कुछ ही सालो में तरक्की होने लगी।
राजाराम गांव में पैसे भेजता और भागी राम उस पैसे का खेत ,घर ,समाज , और बच्चों की शादी भी करने लगा। इस बीच राजाराम गांव आता भी था तो शादी में पर कुछ दिन के लिए ही । जब गांव आता तो दूर खेत में अपने बचपन वाली झोपडी में रहता। उसका लड़का पूछता बबुआ आप यहाँ खेत में अपने इस पुराने झोपड़े में क्यों रहते हो। राजाराम के शब्दों में एक अलग ही बात थी, बेटा मुझे तेरे पक्के मकान का घर रास नहीं आता रे,, इसलिए मैं जितने दिन भी गांव रहता यही आकार सोता हूँ.
धीरे धीरे घरवालों को इस बात की आदत बन गयी थी। राजाराम जब भी आता झोपड़े में ही रहता।
अब काफी साल हो गए राजाराम का शरीर जवाब देने लगा था , वो हर बार गांव ये सोच कर आता की आखिरी बार है, पर घर आकर एक नया ही बखेड़ा शुरू हो जाता, अभी मंझली की शादी बाकी है अभी छोटी की शादी बाकी है और लड़के को कुँवारे मारोगे क्या, थोड़ा और जमा कर लो।
थक हार कर फिर वो शहर चला जाता।
अंततः जब गांववालों ने संमझाया की अब शहर मत भेजो राजाराम बूढ़ा हो गया है ,घर रखो और सेवा करो।। तब जाकर घरवाले माने,, कुछ दिन तक पक्के घर के एक कोने में रखा ,, फिर धीरे धीरे दूरिया बढ़ती गयी।
एक दिन उसके लड़के ने राजाराम से कहा, बबुआ ! तू काहे ना आपन खेतवा वाले झोपड़िया में रहता ।
खेतवो रखा जात ,, जानवर बहुत बढ़ गइल बाटे, राजाराम के सीने पर पहाड़ टूट पड़ा था ,, भाई कहता था, बीबी कहती थी ।। आज मेरा बेटा भी मुझे घर के बाहर देखना चाहता है!
बबुआ आखिर तूही त कहत रहला कि हम अपने बचपन वाली झोपड़िया के नाहीं छोड़ब, जब जब आवत रहला तब तब संवारत रहला वोकरा के... राजाराम के आँखों में आंसू थे उसके मुंह से जवाब नहीं निकला ,, पर उसकी आँखे बोल गयी ,, बचवा हम तुहरा के भी त बत्तीस साल से जोगवत बाटी,, अब इकहत्तर साल के राजाराम का दिन और रात उसी झोपडी में बीतने लगा , चारो तरफ भागी राम और बच्चे की किरकिरी होने लगी ,, पर वो सब अपने भोगविलासिता में मशगूल थे,
कभी खाना समय से मिलता तो कभी भूखे सोना पड़ता उस महान पुरुष को जिसने अपनी पूरी जवानी बच्चो के लिए कुर्बान कर दिया,, सूखे हुए आँखों में आंसू भी नहीं आते,,, एक दिन उनकी आत्मा उसी झोपडी में विलीन हो गयी ,, उसके मृत्यु की खबर घरवालों को दो दिन बाद मिली ,, और राजाराम सदा के लिए चला गया ,,, तब गांववालों ने निर्णय लिया कि राजाराम को इसी झोपड़ी में आग दिया जाय ,, और राजाराम अपने इकहत्तर साल के झोपडी के साथ मिटटी में दफ़न हो गया..!
शैलेश सिंह
( कहानी पूरी सत्य घटना पर आधारित)
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