Friday, 14 April 2017

"माँ " : शैलेश सिंह

जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गयी।
तेरी खुशियाँ हे माँ।
सब रिश्तों की तुझको चिंता
पर तेरे लिए क्या माँ।
सुबह से शाम फिर रात फिर सुबह
बदल जाती थी।


..... माँ फिर भी नहीं घबराती थी।
हम थोड़े काम कर लिए तो ।
माँ कहती आराम कर ले बेटा थक गया तू।
क्या हमने कभी माँ से पूछा।
तुम थक सी गयी हो हे माता।
ला तेरे बरतन धो दू।
ला थोड़ी रोटियां बना दू।

हे माँ तेरे पैर दबा दू।।
फिर हँस कर माँ कहती बेटा ...
तू बड़ा हो गया ... अपने पैरो पर खड़ा हो गया।
ये काम तुझे शोभा न देगी।
क्या पूछा कभी हमने हे माँ
तू भी तो बूढी होने लगी।

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